शेर पिंजरे में, नए राजा की जय-जय

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केके रिपोर्टर की कलम से...

 मध्य प्रदेश की सियासी जंगल में एक बार फिर हलचल मची है, और इस बार सुर्खियों का शिकार हैं बीजेपी के कद्दावर शेर, कैलाश विजयवर्गीय, जिन्हें कथित तौर पर नए राजा ने पिंजरे में जकड़ दिया है! इंदौर के मंच से विजयवर्गीय ने अपनी ही सरकार के वन विभाग पर मनमानी का तीर छोड़ा, लेकिन ये तीर उल्टा उनके ही सियासी कद को भेद गया। 


51 लाख पौधे लगाने का भव्य लक्ष्य और 7 लाख पौधों की प्रगति का ढोल पीटते हुए उन्होंने मुख्यमंत्री मोहन यादव से गुहार लगाई कि वन विभाग के अफसर उनकी एक नहीं सुन रहे। अब ये तो वही बात हुई कि जंगल का शेर भले ही दहाड़े, पर नए राजा के दरबार में उसकी आवाज गूंज नहीं रही! कांग्रेस ने इस मौके को लपकते हुए विजयवर्गीय पर ऐसा तंज कसा कि सियासी गलियारों में हंसी के फव्वारे छूट गए। "देखो देखो कौन आया, शेर आया शेर आया" का नारा, जो कभी विजयवर्गीय की शान था, अब उनके लिए व्यंग्य का हथियार बन गया। कांग्रेस ने चुटकी लेते हुए कहा कि जूनियर के सीनियर हो जाने की सजा शेर को भुगतनी पड़ रही है, और नए राजा ने उन्हें पिंजरे में कैद कर लिया है! ये कटाक्ष इतना चटपटा है कि मानो मिर्ची का तड़का सियासी खिचड़ी में पड़ गया हो। 

विजयवर्गीय, जो कभी बीजेपी के चाणक्य कहलाते थे, आज मंच से वन विभाग को कोसते और सीएम से निर्देश देने की मिन्नतें करते नजर आए। ये दृश्य सियासी ड्रामे से कम नहीं, जहां शेर की दहाड़ को नजरअंदाज कर नए राजा अपनी चौपाल सजाए बैठे हैं। कांग्रेस का ये वार सिर्फ विजयवर्गीय पर नहीं, बल्कि बीजेपी की आंतरिक खींचतान पर भी करारा प्रहार है। सवाल ये उठता है कि क्या वाकई विजयवर्गीय का रुतबा कम हुआ है, या ये सिर्फ सियासी मंच का एक और नाटक है? एक तरफ विजयवर्गीय का वन विभाग पर इल्जाम, दूसरी तरफ कांग्रेस का तीखा तंज—ये सारा माजरा मध्य प्रदेश की सियासत को मसालेदार बना रहा है। जहां शेर की दहाड़ अब गुहार में बदल रही है, वहां नए राजा की चुप्पी और कांग्रेस का व्यंग्य सियासी थाली में स्वाद बढ़ा रहे हैं। अब देखना ये है कि क्या विजयवर्गीय इस पिंजरे से निकलकर फिर दहाड़ेंगे, या नए राजा का राजपाट और चमकेगा? सियासत का ये जंगल और रोचक होने वाला है, केके रिपोर्टर की नजरें टिकी हैं!