केके रिपोर्टर की कड़क कलम से
भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के गलियारों में इन दिनों हलचल मची है। सियासी चाय की प्याली में तूफान उठा है, और इस तूफान का नाम है—शिवराज सिंह चौहान! मध्य प्रदेश के ‘मामा’ अब दिल्ली की सियासत में राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी की रेस में सबसे आगे बताए जा रहे हैं। लेकिन ये रेस इतनी आसान नहीं, जितनी नजर आती है। तो चलिए, केके रिपोर्टर की कड़क नजर से देखते हैं कि आखिर इस सियासी रेस में क्या पक रहा है और क्या जल रहा है!
मामा का ‘मास्टरस्ट्रोक’ या RSS का ‘रिमोट कंट्रोल’?
शिवराज सिंह चौहान, जिन्हें मध्य प्रदेश में ‘मामा’ के नाम से जाना जाता है, अब दिल्ली की सियासत में ‘बिग बॉस’ बनने की राह पर हैं। सूत्रों की मानें तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की पसंद ने शिवराज को इस रेस में टॉप पर ला खड़ा किया है। लेकिन बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व, यानी मोदी-शाह की जोड़ी, क्या इस बार RSS के ‘रिमोट’ को बटन दबाने देगी? या फिर कोई नया ‘साइलेंट वॉरियर’ बाजी मार लेगा? सवाल ये है कि क्या मामा की ‘लाड़ली बहना’ योजना की तरह राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी भी उनके लिए ‘लाड़ली’ साबित होगी?
शिवराज का ट्रैक रिकॉर्ड देखें तो मामा कोई छोटे-मोटे खिलाड़ी नहीं। मध्य प्रदेश में 17 साल तक मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने वाले शिवराज ने अपनी जमीनी पकड़ और ‘मामाजी’ वाली इमेज से जनता का दिल जीता है। विदिशा लोकसभा सीट से 2024 में रिकॉर्ड 8 लाख वोटों की जीत ने तो उनके सियासी कद को और ऊंचा कर दिया। लेकिन दिल्ली की कुर्सी भोपाल की गद्दी से कहीं ज्यादा फिसलन भरी है। यहां संगठनात्मक अनुभव, क्षेत्रीय संतुलन और जातीय समीकरण का कॉकटेल चाहिए। और शिवराज इस कॉकटेल को कितना अच्छा ब्लेंड कर पाएंगे, ये देखना बाकी है।
रेस में कौन-कौन? ‘छुपा रुस्तम’ की तलाश
शिवराज अकेले नहीं हैं इस दौड़ में। रेस में उनके साथ हैं हरियाणा के पूर्व सीएम मनोहर लाल खट्टर, केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, और भूपेंद्र यादव। इनके अलावा कुछ लोग सुनील बंसल और विनोद तावड़े जैसे ‘पार्टी के चाणक्य’ को भी दांव पर लगाने की बात कर रहे हैं। लेकिन शिवराज का नाम सबसे ज्यादा चटखारा ले रहा है। क्यों? क्योंकि मामा का RSS से पुराना नाता है। 13 साल की उम्र में RSS के स्वयंसेवक बने शिवराज आज भी संघ की नजरों में ‘लाडले’ हैं।
लेकिन सियासत में ‘लाडले’ होना ही काफी नहीं। बीजेपी के नियम कहते हैं कि राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव तब तक नहीं हो सकता, जब तक 37 में से कम से कम 19 राज्यों के प्रदेश अध्यक्षों का चुनाव न हो जाए। अभी तक 26 राज्यों में ये प्रक्रिया पूरी हो चुकी है, लेकिन उत्तर प्रदेश, गुजरात और कर्नाटक जैसे बड़े राज्यों में अभी जंग बाकी है। यानी, रेस का ट्रैक अभी पूरी तरह तैयार नहीं हुआ, और शिवराज की गाड़ी कितनी तेज दौड़ेगी, ये तो वक्त ही बताएगा।
‘दलित कार्ड’ और सियासी ड्रामा
सूत्रों की माने तो बीजेपी इस बार राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए ‘दलित’ या ‘ओबीसी’ कार्ड खेलने की सोच रही है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के ‘दलित’ चेहरे को काउंटर करने के लिए बीजेपी भी अपने ‘सामाजिक समीकरण’ को मजबूत करना चाहती है। लेकिन शिवराज, जो ओबीसी वर्ग से आते हैं, क्या इस रणनीति में फिट बैठेंगे? या फिर पार्टी कोई ‘छुपा रुस्तम’ लाएगी, जो सबको चौंका दे?
वहीं, कुछ सियासी पंडितों का कहना है कि शिवराज की ‘मामाजी’ वाली इमेज भले ही मध्य प्रदेश में हिट रही हो, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर क्या ये ‘पंच’ उतना ही जोरदार होगा? उनके समर्थक कहते हैं कि शिवराज की सहमति बनाने की कला और संगठन पर पकड़ उन्हें इस रेस में आगे रखती है। लेकिन आलोचक तंज कसते हैं कि मध्य प्रदेश में ‘लाड़ली बहना’ और ‘जन आशीर्वाद यात्रा’ चलाने वाले मामा को दिल्ली में ‘मोदी-शाह’ की छाया से निकलना होगा।
RSS vs BJP: सियासत का ‘ट्विस्ट’
सबसे मजेदार बात ये है कि इस रेस में RSS और बीजेपी के बीच ‘सहमति’ का सवाल सबसे बड़ा है। RSS चाहता है कि नया अध्यक्ष संगठन को मजबूत करे और 2024 के लोकसभा चुनाव में 240 सीटों के ‘झटके’ को 2029 में ‘जैकपॉट’ में बदल दे। लेकिन मोदी-शाह की जोड़ी शायद किसी ‘अपने आदमी’ को कुर्सी पर बिठाना चाहती है। शिवराज इस टकराव में कहां फिट होंगे? क्या वो RSS के ‘लाडले’ बनकर कुर्सी हथियाएंगे, या फिर शीर्ष नेतृत्व का कोई नया ‘साइलेंट किलर’ बाजी मार लेगा?