श्रावण का महीना यानी वो समय जब आकाश से बूंदें नहीं, शिव कृपा बरसती है। हिंदू पंचांग के अनुसार यह मास भगवान शिव को समर्पित होता है, जिसे उत्तर भारत में श्रावण और दक्षिण भारत में सावन कहा जाता है। यह मास धार्मिक दृष्टि से इतना महत्वपूर्ण है कि इसमें आने वाले हर सोमवार को श्रावण सोमवार के रूप में मनाया जाता है, और इस दिन व्रत रखने, शिव पूजा करने और भगवान शिव का स्मरण करने से विशेष पुण्य फल की प्राप्ति होती है। पंडित कमलेश कृष्ण शास्त्री के अनुसार, श्रावण मास का महत्व पुराणों में वर्णित समुद्र मंथन की घटना से जुड़ा है, जब देवताओं और असुरों द्वारा किए गए मंथन से निकले विष को भगवान शिव ने ग्रहण किया था ताकि सृष्टि को बचाया जा सके। उस समय उनका कंठ नीला पड़ गया, जिससे उन्हें नीलकंठ कहा जाने लगा। तभी से यह मास शिव भक्तों के लिए विशेष हो गया और लोगों ने शिव को प्रसन्न करने के लिए इस पूरे मास में व्रत, पूजा, जलाभिषेक और मंत्र जाप जैसे कर्मों की परंपरा शुरू की।
श्रावण का प्रत्येक सोमवार मान्यता और भक्ति की दृष्टि से अत्यंत फलदायी माना जाता है। इस दिन भक्त शिवलिंग पर गंगाजल, दूध, दही, शहद, बेलपत्र, धतूरा, भस्म और सफेद पुष्प अर्पित करते हैं और ओम् नमः शिवाय का जाप करते हैं। विशेष रूप से महिलाएं—विवाहित और अविवाहित दोनों ही—इस व्रत को पूरी आस्था के साथ करती हैं। माना जाता है कि यह व्रत करने से अविवाहित कन्याओं को योग्य जीवनसाथी की प्राप्ति होती है और विवाहित स्त्रियों को सौभाग्य और संतान सुख का आशीर्वाद प्राप्त होता है। पुरुष भक्त भी इस दिन उपवास रखते हैं और दिनभर भगवान शिव का ध्यान करते हुए मंदिरों में जाकर पूजन करते हैं।
शास्त्रों में वर्णित है कि श्रावण सोमवार का व्रत सूर्योदय से पहले शुरू किया जाता है। व्रती प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनते हैं और पूजा की तैयारी करते हैं। शिवलिंग का अभिषेक पंचामृत से किया जाता है—जिसमें दूध, दही, शहद, घी और गंगाजल शामिल होता है। फिर बेलपत्र, धतूरा, सफेद फूल और चंदन अर्पित कर शिव आरती की जाती है। कई लोग इस दिन विशेष मंत्रों का जाप करते हैं, जैसे महामृत्युंजय मंत्र, ओम् त्र्यंबकं यजामहे सुगंधिं पुष्टिवर्धनम्... या शिव चालीसा का पाठ करते हैं।
इस दिन शिव पुराण, लिंग पुराण या नीलमत पुराण जैसे ग्रंथों का श्रवण या पाठ करना भी अत्यंत शुभ माना गया है। व्रत करने वालों के लिए भोजन में सात्विकता का विशेष ध्यान रखा जाता है। लहसुन-प्याज रहित भोजन किया जाता है, और कई भक्त फलाहार या सिर्फ जल पर निर्भर रहते हैं। यह व्रत केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं है, बल्कि आचरण में भी शुद्धता का पालन किया जाता है।
श्रावण मास की एक और विशेषता है कि यह पूरे वातावरण को भक्तिमय बना देता है। मंदिरों में घंटियों की गूंज, शिव नाम के संकीर्तन, कांवड़ यात्रा और शिव बारात जैसे आयोजन इस महीने को और भी पवित्र बना देते हैं। इस माह में श्रद्धालु विशेष रूप से हरिद्वार, उज्जैन, वाराणसी, केदारनाथ, त्र्यंबकेश्वर, महाकालेश्वर जैसे प्रमुख शिवधामों में जाकर भगवान शिव के दर्शन करते हैं और जल चढ़ाते हैं।
पंडित कमलेश शास्त्री यह भी बताते हैं कि श्रावण मास का महत्व केवल धार्मिक नहीं, बल्कि मानसिक और आत्मिक दृष्टि से भी अत्यंत आवश्यक है। यह वह समय होता है जब व्यक्ति अपनी आस्था के साथ अपने अंदर की नकारात्मकता को त्याग कर, सकारात्मक ऊर्जा को आत्मसात करता है। शिव भक्ति आत्मशुद्धि की ओर एक कदम है। उनकी आराधना से क्रोध शांत होता है, मन स्थिर होता है और जीवन में संतुलन आता है।
आज के भागदौड़ और तनाव भरे जीवन में श्रावण सोमवार का यह व्रत हमें संयम, श्रद्धा और आत्मविश्वास सिखाता है। यह व्रत न सिर्फ धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह हमें अनुशासित जीवन, संयमित आहार, सकारात्मक सोच और गहराई से आत्मावलोकन की प्रेरणा देता है। शिव भक्ति का यह पर्व हमें सिखाता है कि त्याग में ही शक्ति है, और सादगी में ही सौंदर्य।
श्रावण मास को केवल परंपरा न मानें, इसे अनुभव करें, इसमें डूबें और शिव भक्ति को अपने जीवन का हिस्सा बनाएं। जब कोई सच्चे मन से भगवान शिव का ध्यान करता है तो वह संसारिक कष्टों से मुक्त होकर आध्यात्मिक शांति प्राप्त करता है। इसलिए यदि जीवन में शांति, समृद्धि और सफलता चाहिए, तो इस श्रावण मास और सोमवार के व्रत को पूरी श्रद्धा और विश्वास से करें।
जय भोलेनाथ!