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ग्राम खमरिया की सविता खरोले ने रचा सफलता का उदाहरण - अब चला रही है तीन व्यवसाय

बालाघाट
आजीविका मिशन की मदद से सविता के जीवन में आयी खुशहाली

गरीब परिवार की सविता बन गई सफल व्यवसायी
कभी अपने परिवार का पेट पालने के लिए मजदूरी करने वाली महिला आज तीन-तीन व्यवसाय चला रही है। लालबर्रा तहसील के ग्राम खमरिया की सविता खरोले की मेहनत और आजीविका मिशन की मदद से उसके जीवन में खुशहाली आ गई है। सविता अब अपने क्षेत्र की अन्य महिलाओं के लिए प्रेरणा बन चुकी हैं।
गरीब परिवार में जन्मी सविता ने अपने जीवन में बहुत कठिनाइयाँ देखीं। उनके पति गुरूप्रसाद छोटी सी चिकन शॉप चलाते थे और मजदूरी भी करते थे। इससे घर का खर्च बड़ी मुश्किल से चलता था। दो वक्त की रोटी का भी सही इंतजाम नहीं हो पाता था। सविता कक्षा 10वीं तक शिक्षित हैं और अपने परिवार का जीवन स्तर सुधारने की इच्छा रखती थीं, लेकिन आर्थिक स्थिति उन्हें आगे बढ़ने नहीं देती थी।

स्वयं सहायता समूह से जुड़कर बदली किस्मत
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वर्ष 2019 में जब राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM) की टीम गांव में महिलाओं के स्वयं सहायता समूह बनाने के लिए पहुँची, तब सविता ने इसमें जुड़ने का निश्चय किया। 15 फरवरी 2019 को रविदास आजीविका स्वयं सहायता समूह का गठन हुआ और सविता को समूह का अध्यक्ष चुना गया।

सविता के नेतृत्व और अनुशासन के कारण समूह ने जल्दी ही प्रगति की राह पकड़ ली। समूह की नियमित बचत, आपसी सहयोग और अनुशासन देखकर आजीविका मिशन द्वारा समूह को 5 हजार रुपये की रिवॉल्विंग फंड राशि दी गई। इसके बाद समूह को सीआईएफ के 50 हजार रुपये, सीसीएल के 30 हजार रुपये, तथा आगे चलकर 2 लाख रुपये का ऋण भी प्राप्त हुआ।

जूते-चप्पल और कपड़ा व्यवसाय से मिली सफलता
सविता ने समूह से मिले अवसर का पूरा लाभ उठाया। अक्टूबर 2021 में उन्होंने समूह से 30 हजार रुपये का ऋण लेकर अपने पति के लिए जूते-चप्पल की दुकान खोली। यह उनका पहला व्यवसायिक कदम था। धीरे-धीरे दुकान से आय बढ़ने लगी तो उन्होंने अक्टूबर 2022 में समूह से 2 लाख रुपये का ऋण लेकर कपड़ा दुकान भी प्रारंभ की।

वर्ष 2023 में सविता ने बैंक से 1 लाख रुपये का मुद्रा लोन लेकर कपड़ा दुकान का नया काउंटर बनवाया और उसे सुंदर ढंग से सजाया-संवारा। आज सविता और उनके पति तीन व्यवसाय — जूते-चप्पल, कपड़ा और चिकन शॉप — संचालित कर रहे हैं।

अब हर माह 25 हजार रुपये की नियमित आय
इन तीनों व्यवसायों से सविता के परिवार की मासिक आय लगभग 25 हजार रुपये तक पहुँच गई है। अब सविता और उनके पति को मजदूरी करने की जरूरत नहीं है। आर्थिक स्थिति सुधरने के साथ ही सविता अपने दोनों बेटों की पढ़ाई पर विशेष ध्यान दे रही हैं। उनका बड़ा बेटा बड़े शहर में माइनिंग इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा है, जबकि छोटा बेटा पढ़ाई के साथ व्यवसाय में सहयोग करता है।

आत्मनिर्भरता बनी प्रेरणा
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सविता समय पर समूह और बैंक से लिए गए सभी ऋणों की किस्तें अदा कर रही हैं तथा अपने परिवार के भविष्य के लिए बचत भी कर रही हैं। आज वह अपने गांव की अन्य महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं।

सविता कहती हैं — “वक्त से पहले और किस्मत से ज्यादा किसी को नहीं मिलता। लेकिन मेहनत और सही मार्गदर्शन से जीवन बदला जा सकता है। आजीविका मिशन ने मुझे आत्मविश्वास और आत्मनिर्भर बनने का अवसर दिया।”

समाज में बढ़ा मान-सम्मान
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सफल व्यवसायी बनने के बाद अब सविता और उनके पति का समाज में मान-सम्मान बढ़ गया है। लोग उनकी सफलता की कहानी से प्रेरणा लेकर स्वयं सहायता समूह से जुड़ रहे हैं। सविता आज न केवल अपने परिवार का जीवन सुधार चुकी हैं, बल्कि गांव की अन्य महिलाओं के लिए एक मिसाल बन गई हैं।
✍️ रिपोर्टर - प्रहलाद गजभिये ( जिला ब्युरो )
📍        बालाघाट

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