"बेगमगंज से हैदरगढ़ रास्ता बंद है… लेकिन जिम्मेदारों की आंखें खुली हैं या नहीं, ये बड़ा सवाल है। रायसेन ज़िले के बेगमगंज में हैदरगढ़ जाने वाले रास्ते पर बीना नदी पर बेरखेड़ी पुल निर्माणाधीन है। नया पुल अभी अधूरा पड़ा है, और पुराने पुल को प्रशासन ने बंद तो कर रखा है, लेकिन न कोई सही रास्ता दिखाने वाला बोर्ड, न कोई चेतावनी संकेत। यानी जो भी ड्राइवर या यात्री यहां से गुजरने की कोशिश करता है, वो समझ नहीं पाता कि रास्ता कहां खत्म हो रहा है और मौत कहां से शुरू"
पानी से भरा पुराना पुल, बिना किसी अवरोधक के, रात के अंधेरे में जाल जैसा बन चुका है। सड़क पर मोड़ है, और उसके आगे सीधा पानी में डूबा रास्ता — एक गलत मोड़ और सीधा खतरा! क्या यही है ‘रास्ता बंद’ की परिभाषा? या फिर अफसरों ने मान लिया है कि जनता खुद अंदाज़ा लगा लेगी कि कहां मरने का खतरा है और कहां नहीं! अब सवाल है — क्या प्रशासन जानबूझकर जनता की परीक्षा ले रहा है? ठेकेदार का ध्यान शायद बिलों पर है, और जिम्मेदारों का ध्यान दफ्तर की ठंडक पर।
सागर रोड तिगड्डे पर जो चेतावनी बोर्ड रखे गए थे, वो अब सड़क किनारे बिखरे पड़े हैं, मानो किसी ने कहा हो — “काम दिखाने का था, करने का नहीं।” रास्ता बंद करने का मतलब सुरक्षा होता है, लेकिन यहां तो लगता है किसी ने ताला लगाया और चाबी फेंक दी। न गश्त, न सुरक्षा, न वैकल्पिक मार्ग का स्पष्ट संकेत। वैकल्पिक मार्ग का बोर्ड लगा है शहर के बीच में... ये कोई बंद रास्ता नहीं — ये प्रशासन की जिम्मेदारी का बंद दरवाज़ा है। जनता पूछ रही है — अगर रास्ता बंद है, तो क्या सुरक्षा खुली है? क्या लोगों को यूं ही अंधेरे में भटकने के लिए छोड़ दिया गया है? प्रशासन की नींद इतनी गहरी है कि शायद उन्हें याद भी नहीं कि जनता को सुरक्षित रास्ता देना उनका कर्तव्य है, एहसान नहीं। अब वक्त है कि ठेकेदार और अफसर दोनों जवाब दें, आखिर कब तक जनता की जान यूं ही खतरे में डाली जाएगी? क्या सिस्टम तब जागेगा जब किसी की जान जाएगी? अब सवाल आपसे — क्या ये ‘रास्ता बंद’ सिर्फ सड़क का है या जिम्मेदारी का भी? केके रिपोर्टर की कलम कहती हैं कि जिम्मेदारों की नींद इतनी गहरी है कि अब तो लगता है अलार्म भी इस्तीफा दे चुका है! दफ्तरों में बैठे जनाब ऐसे कुर्सी पर पसरे हैं, जैसे बेगमगंज में सब कुछ स्वर्ग जैसा चल रहा हो, लेकिन साहबों की फाइलें और चाय दोनों सही तापमान पर हैं। हालात ये हैं कि सड़क डूबी है, पुल अधूरा है, और जिम्मेदारी पूरी तरह सोई हुई। जिस नींद में ये जिम्मेदार हैं, अगर उतनी देर कोई ड्राइवर आंख बंद करे तो सीधे हादसा तय है! पर फर्क किसे पड़ता है — जब तक अखबार की सुर्खियों में ‘मौत’ नहीं छपती, हमारे सिस्टम के ये ‘सोए सिपाही’ जागने वाले नहीं। सवाल ये है — क्या ये नींद सरकारी ड्यूटी का हिस्सा है या जनता की जान के साथ मज़ाक?
वहीं इस मामले में बेगमगंज एसडीएम सौरभ मिश्रा का कहना हैं “जनता की सुरक्षा और सुविधा हमारी पहली प्राथमिकता है। आपके माध्यम से जानकारी मिली है कि हैदरगढ़ मार्ग पर निर्माणाधीन पुल के पास उचित चेतावनी संकेत नहीं हैं। संबंधित विभाग को तत्काल निर्देश दिए जा रहे हैं कि वहां सुरक्षा व्यवस्था और चेतावनी बोर्ड की व्यवस्था सुनिश्चित की जाए, ताकि किसी भी प्रकार की दुर्घटना या असुविधा न हो।”


