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नगर पालिका रायसेन में जैव विविधता समिति की बैठक आयोजित — लोक जैव विविधता पंजी तैयार करने की प्रक्रिया शुरू

 


रायसेन। नगर पालिका परिषद रायसेन में बुधवार को जैव विविधता प्रबंधन समिति (BMC) की महत्वपूर्ण बैठक आयोजित की गई। इस बैठक का प्रमुख उद्देश्य लोक जैव विविधता पंजी (People’s Biodiversity Register - PBR) तैयार करने की दिशा में कार्ययोजना बनाना और उसके क्रियान्वयन की प्रक्रिया को प्रारंभ करना था। बैठक की अध्यक्षता समिति की अध्यक्षा श्रीमती सविता जमना सेन ने की। बैठक में विधायक प्रतिनिधि जमना सेन, मुख्य नगर पालिका अधिकारी सुरेखा जाटव, समिति के सदस्य प्रवेश पाटीदार, वन विभाग से रेंजर, डॉ. शुचि मोदी और डॉ. अंकित अग्रवाल (रवींद्रनाथ टैगोर यूनिवर्सिटी रायसेन) समेत कई गणमान्य मौजूद रहे। बैठक में यह निर्णय लिया गया कि स्थानीय स्तर पर सर्वेक्षण और दस्तावेजीकरण का कार्य शीघ्र ही प्रारंभ किया जाएगा। इसके तहत नगर की जैव विविधता जैसे वनस्पतियाँ, जीव-जंतु, जल स्रोत, पारंपरिक कृषि पद्धतियाँ, औषधीय पौधों और उनसे जुड़े स्थानीय ज्ञान को एकत्र कर व्यवस्थित रूप से दर्ज किया जाएगा। जैव विविधता समिति निभा रही अहम भूमिका बैठक में यह भी चर्चा हुई कि लोक जैव विविधता पंजी न केवल जैविक संपदा का दस्तावेज होगा, बल्कि इसके माध्यम से संकटग्रस्त और लुप्तप्राय प्रजातियों के संरक्षण, पारंपरिक ज्ञान का संरक्षण, और जैव संसाधनों से प्राप्त लाभों का न्यायपूर्ण वितरण भी सुनिश्चित किया जा सकेगा बीएमसी अध्यक्ष ने सभी सदस्यों से अपील की कि वे इस प्रक्रिया में स्थानीय लोगों को भी जोड़ें, ताकि यह पंजी समुदाय-आधारित और व्यापक बन सके।जैव विविधता समिति के कार्य और उद्देश्य BMC समिति लोक जैव विविधता पंजी तैयार करने में केंद्रीय भूमिका निभाती है। इसके तहत समिति क्षेत्र में जनसुनवाई, सर्वेक्षण, सूचना संग्रहण और दस्तावेजीकरण जैसे कार्यों का संचालन करती है। यह न केवल जैव विविधता के संरक्षण का जरिया है, बल्कि स्थानीय समुदायों को उनके जैविक अधिकारों और संसाधनों के प्रति जागरूक करने का एक सशक्त माध्यम भी है। इस पहल से भविष्य में नीति निर्माण, पर्यावरणीय संरक्षण योजनाओं और सतत विकास कार्यक्रमों में स्थानीय सहभागिता को बढ़ावा मिलेगा।

नगर पालिका रायसेन की यह पहल स्थानीय स्तर पर जैव विविधता संरक्षण और पारंपरिक ज्ञान के संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इससे न केवल पर्यावरण संरक्षण को बल मिलेगा बल्कि स्थानीय समुदायों को उनके पारंपरिक संसाधनों का आर्थिक और सामाजिक लाभ भी प्राप्त हो सकेगा।

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