जयपुर में नकली घी का बड़ा खुलासा
7,500 लीटर मिलावटी घी जब्त, खाद्य सुरक्षा व्यवस्था पर उठे गंभीर सवाल
जयपुर | वेब डेस्क
राजस्थान की राजधानी जयपुर में नकली घी के बड़े कारोबार का खुलासा सामने आने के बाद खाद्य सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर प्रश्नचिह्न लग गए हैं। कार्रवाई के दौरान करीब 7,500 लीटर मिलावटी घी जब्त किया गया, जिसे नामी ब्रांड के लेबल लगाकर बाजार में खपाने की तैयारी की जा रही थी।
यह मामला सिर्फ खाद्य मिलावट का नहीं, बल्कि जनस्वास्थ्य के खिलाफ सुनियोजित अपराध के रूप में देखा जा रहा है।
कैसे हुआ खुलासा
जानकारी के अनुसार, एक औद्योगिक क्षेत्र में लंबे समय से मिलावटी घी तैयार किया जा रहा था। वनस्पति और रिफाइंड तेल को रसायन और एसेंस मिलाकर घी जैसा रूप दिया जाता था। इसके बाद इसे लोकप्रिय ब्रांड के पैक में भरकर बाजार में सप्लाई किया जाता था।
हैरानी की बात यह है कि इतनी बड़ी गतिविधि लंबे समय तक बिना किसी ठोस निगरानी के चलती रही।
बड़े सवाल, जिनके जवाब बाकी
इस कार्रवाई के बाद कई अहम सवाल खड़े हो गए हैं—
- इतनी बड़ी फैक्ट्री वर्षों तक कैसे संचालित होती रही?
- खाद्य सुरक्षा विभाग की नियमित जांच कहां थी?
- लाइसेंस किस आधार पर जारी किए गए?
- सप्लाई चेन में कौन-कौन लोग शामिल थे?
सूत्रों के अनुसार, इस मामले में मुख्य आरोपी अभी भी फरार बताया जा रहा है, जिससे जांच प्रक्रिया पर सवाल और गहरे हो गए हैं।
⚠️ सेहत के लिए गंभीर खतरा
विशेषज्ञों का मानना है कि नकली घी का नियमित सेवन—
- हृदय रोग
- लीवर से जुड़ी बीमारियां
- बच्चों और बुजुर्गों में गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं
का कारण बन सकता है। ऐसे उत्पाद शरीर को धीरे-धीरे अंदर से नुकसान पहुंचाते हैं।
मिलीभगत या गंभीर लापरवाही?
यदि अधिकारियों की मिलीभगत नहीं थी, तो यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि—
- कच्चा माल बिना रोक-टोक कैसे आता रहा?
- पैकेजिंग और लेबलिंग पर किसी की नजर क्यों नहीं गई?
- बाजार तक यह घी किस माध्यम से पहुंचा?
इन सभी बिंदुओं पर अब भी स्थिति स्पष्ट नहीं है।जनहित में सख्त कार्रवाई की जरूरत
इस पूरे मामले में—
- केवल छोटे कर्मचारियों पर नहीं
- बल्कि लाइसेंस जारी करने वाले
- निगरानी में चूक करने वाले अधिकारी
- और पूरे सप्लाई नेटवर्क
पर कड़ी और निष्पक्ष कार्रवाई की मांग उठ रही है।
👉 यह सिर्फ मिलावट नहीं, जनता की सेहत के साथ खुला खिलवाड़ है।
👉 दोषियों को संरक्षण देने वाला सिस्टम भी उतना ही जिम्मेदार माना जाना चाहिए।
अब यह देखना अहम होगा कि जांच सिर्फ फैक्ट्री तक सीमित रहती है या पूरे नेटवर्क तक पहुंचती है।