रेलवे में बीमा का भेदभाव? सुप्रीम कोर्ट ने पूछा—ऑनलाइन टिकट वालों की जान ज्यादा कीमती है क्या?
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय रेलवे से कड़े शब्दों में पूछा है कि ट्रेन हादसों में जब जोखिम सभी यात्रियों के लिए समान होता है, तो दुर्घटना बीमा सिर्फ ऑनलाइन टिकट वाले यात्रियों तक ही क्यों सीमित है? खिड़की से टिकट खरीदने वाले यात्री इस सुविधा से वंचित क्यों?
न्यायमूर्ति ए. हसनुद्दीन अमानुल्लाह और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने रेलवे को आदेश दिया है कि इस नीति का स्पष्ट कारण हलफनामे में बताए और यह सुनिश्चित करे कि सुरक्षा—विशेषकर ट्रैक व लेवल क्रॉसिंग—उसकी सर्वोच्च प्राथमिकता रहे।
अदालत ने टिप्पणी की, “हादसा न ऑनलाइन देखता है न ऑफलाइन। फिर बीमा नीति यात्रियों में भेदभाव क्यों करती है?”
कोर्ट ने यह भी चेताया कि अब रेलवे अस्पष्ट योजनाओं या अधूरी दलीलों से काम नहीं चला सकता। उसे ठोस कदम और पारदर्शी जवाब देने होंगे।
मामला इसलिए उठा क्योंकि IRCTC के जरिये ऑनलाइन टिकट बुक करने वालों को मामूली शुल्क में व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा मिल जाता है, जबकि ऑफलाइन/जनरल टिकट धारकों को यह विकल्प नहीं मिलता।
यात्री लंबे समय से सवाल उठा रहे थे—क्या सिर्फ ऑनलाइन टिकट लेने से ही जीवन की कीमत बढ़ जाती है?
अब सुप्रीम कोर्ट ने वही सवाल आधिकारिक रूप से रेलवे के सामने रख दिया है।
रेलवे को अपनी नीति का औचित्य बताने के लिए अगली सुनवाई में विस्तृत हलफनामा दाखिल करना है।

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