नर्मदा घाट विवाद: प्रशासनिक कर्तव्य या भ्रामक साजिश? अभय वाणी की पड़ताल

नर्मदा घाट विवाद: प्रशासनिक कर्तव्य पर सवाल या साजिशी शोर?

जिला पंचायत सीईओ के पक्ष में तथ्यात्मक और स्पष्ट रिपोर्ट

नरसिंहपुर
नर्मदा घाट पर घटित एक घटनाक्रम से जुड़े वीडियो के वायरल होने के बाद जिस तरह से पूरे मामले को तोड़–मरोड़कर प्रस्तुत किया जा रहा है, उसने प्रशासनिक जिम्मेदारी निभाने वाले अधिकारियों के प्रति एकतरफा और दुर्भावनापूर्ण माहौल बनाने की कोशिश को उजागर कर दिया है।

इसी बीच अभय वाणी ने ज़मीनी सच्चाई को सामने लाते हुए न केवल पूरे घटनाक्रम को तथ्यात्मक रूप से रखा, बल्कि पंडित कैलाश मिश्रा से प्रत्यक्ष संवाद कर उन भ्रामक खबरों की भी वास्तविकता उजागर की, जिन्हें सोशल मीडिया पर जानबूझकर फैलाया जा रहा था।
अभयवाणी की यह पहल स्पष्ट करती है कि भावनाओं के शोर में दबाई जा रही सच्चाई को सामने लाना आज की सबसे बड़ी ज़रूरत है।

वायरल वीडियो के संदर्भ में यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी गजेंद्र सिंह नागेश अपने कर्तव्य निर्वहन के तहत नर्मदा घाट की स्वच्छता, अनुशासन और सार्वजनिक मर्यादा सुनिश्चित करने के लिए मौके पर मौजूद थे।
नर्मदा तट कोई निजी स्थान नहीं, बल्कि करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था से जुड़ा सार्वजनिक धार्मिक स्थल है, जहां नियमों का पालन कराना प्रशासन की संवैधानिक जिम्मेदारी है।

प्रशासनिक दायित्व को ‘अभद्रता’ बताने की कोशिश

वीडियो के कुछ अंशों को चुनिंदा तरीके से प्रसारित कर जिस प्रकार इसे “अभद्र व्यवहार” का रंग देने का प्रयास किया गया, वह न केवल भ्रामक है बल्कि प्रशासनिक कार्यवाही को बदनाम करने की एक सोची-समझी रणनीति भी प्रतीत होती है।

घाट क्षेत्र में अनुशासन बनाए रखने, गंदगी रोकने और सार्वजनिक स्थल की मर्यादा कायम रखने के लिए सख्ती करना अगर अपराध है, तो फिर प्रशासन से अपेक्षा ही क्यों की जाती है?

सवाल उन पर, जो कार्रवाई की मांग कर रहे हैं

जिला पंचायत सीईओ के खिलाफ कार्रवाई की मांग करने वालों से कुछ सीधे और कड़े सवाल पूछे जाने चाहिए—

क्या नर्मदा घाट पर अनुशासनहीनता और गंदगी फैलाना स्वीकार्य है?

क्या प्रशासन सिर्फ मूकदर्शक बना रहे और नियम तोड़ने वालों पर कोई सवाल न उठाए?

क्या सोशल मीडिया पर अधूरी क्लिप वायरल कर देना अब न्याय और जांच का विकल्प बन गया है?


जो लोग बिना पूरे तथ्य जाने, बिना जांच पूरी हुए, केवल भावनात्मक उकसावे के आधार पर अधिकारी पर कार्रवाई की मांग कर रहे हैं, वे दरअसल नर्मदा की पवित्रता नहीं बल्कि अराजकता का पक्ष ले रहे हैं।
ऐसे तथाकथित विरोधियों का उद्देश्य सुधार नहीं, बल्कि दबाव बनाकर प्रशासन को कमजोर करना दिखाई देता है।

भावनाओं की आड़ में नियमों से छूट नहीं

धार्मिक आस्था का सम्मान आवश्यक है, लेकिन आस्था की आड़ में नियमों को कुचलने की छूट किसी को नहीं दी जा सकती।
प्रशासनिक अधिकारी अगर सार्वजनिक स्थल पर नियमों का पालन कराते हैं, तो उसे धार्मिक भावनाओं के विरुद्ध बताना न केवल गलत है, बल्कि एक खतरनाक मिसाल भी है।

निष्कर्ष

नर्मदा घाट प्रकरण में जिला पंचायत सीईओ ने वही किया, जिसकी अपेक्षा एक जिम्मेदार प्रशासनिक अधिकारी से की जाती है।
मामले की निष्पक्ष समीक्षा प्रशासनिक स्तर पर की जा रही है, लेकिन उससे पहले सोशल मीडिया ट्रायल चलाना और कार्रवाई की मांग करना न तो न्यायसंगत है और न ही लोकतांत्रिक।

अभयवाणी द्वारा सामने लाई गई सच्चाई और पंडित कैलाश मिश्रा से हुई स्पष्ट बातचीत यह साबित करती है कि वायरल नैरेटिव और वास्तविकता में बड़ा अंतर है।

यह वक्त अधिकारियों को कठघरे में खड़ा करने का नहीं, बल्कि नियमों और सत्य के साथ खड़े होने का है।
प्रशासनिक कर्तव्य निभाने वालों को निशाना बनाना, अंततः पूरी व्यवस्था को ही कमजोर करेगा।





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