राममंदिर–बाबरी मस्जिद मामले की पुन: सुनवाई पर पूर्व विधायक समरीते के पत्र पर केंद्र सरकार ने लिया संज्ञान
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| किशोर समरीते पूर्व विधायक एवं संयुक्त क्रांति पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष |
बालाघाट। राममंदिर–बाबरी मस्जिद विवाद से जुड़े महत्वपूर्ण कानूनी मुद्दे पर पूर्व विधायक एवं संयुक्त क्रांति पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष किशोर समरीते द्वारा भेजे गए पत्र पर भारत सरकार ने संज्ञान लिया है। समरीते ने 2 अक्टूबर 2025 को माननीय मुख्य न्यायाधीश, सुप्रीम कोर्ट को पत्र लिखकर मामले की क्यूरेटिव पेटिशन के माध्यम से पुन: सुनवाई की मांग की थी। इस पत्र पर भारत सरकार के मंत्रिमंडल सचिवालय ने आई.डी.सं. MISC./1/13/2025-मंत्रि के माध्यम से दिनांक 25 नवंबर 2025 को प्रतिक्रिया भेजी है।
समरीते ने अपने पत्र में कहा कि तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ द्वारा दिया गया फैसला आदर्श न्याय के सिद्धांतों पर खरा नहीं उतरता। उन्होंने कहा कि एएसआई (पुरातत्व सर्वेक्षण) की रिपोर्ट, लिब्राहन आयोग की जांच और सीबीआई की रिपोर्ट के निष्कर्षों में व्यापक अंतर होने के बावजूद न्यायालय द्वारा इन्हें समुचित आधार नहीं माना गया।
छह दशक से अधिक समय तक चले इस विवाद पर समरीते ने लिखा कि सुप्रीम कोर्ट का निर्णय “एक ग्रामीण पंचायत के फैसले जैसा” प्रतीत होता है। उनका कहना है कि मामला सिविल वाद का था और ऐसे मामलों में संपत्ति उसी पक्ष को पूरी तरह मिलनी चाहिए जिसके उत्तराधिकारी वैध रूप से उसके हकदार हों। उन्होंने कहा कि यदि भूमि राममंदिर की है तो पूरी भूमि मंदिर को मिले और यदि मस्जिद की है तो पूरी भूमि मस्जिद पक्ष को दी जानी चाहिए। दो अलग-अलग स्थलों को विभाजित करने का निर्णय “आदर्श न्याय सिद्धांत” के अनुरूप नहीं बताया गया है।
समरीते ने अपने पत्र में ऐतिहासिक संदर्भ भी उल्लेखित किए। उन्होंने बताया कि 1885 में महंत रघुवीर दास द्वारा राममंदिर का ताला खुलवाने के लिए पहला मुक़दमा दायर किया गया था। इस मामले में हिंदू पक्ष की ओर से के. परासरन और विकास सिंह, जबकि मुस्लिम पक्ष की ओर से राजीव धवन और जफ़रयाब जिलानी प्रमुख वकील रहे।
पूर्व विधायक समरीते द्वारा उठाए गए इन बिंदुओं पर केंद्र सरकार द्वारा संज्ञान लिया जाना इस संवेदनशील और ऐतिहासिक मामले में एक नया पहलू जोड़ता है। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि आगे इस मामले में क्या प्रक्रियात्मक कदम उठाए जाते हैं।

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