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“छठ और विधानसभा चुनाव से पहले बिहार जाने वाली ट्रेनें ठसाठस भरी, यात्री परेशान”
पटना । बिहार में विधानसभा चुनावों और छठ महापर्व से पहले घर लौटने की चाह में लोगों की भीड़ इन दिनों ट्रेनों पर उमड़ पड़ी है। केंद्र सरकार ने पहले दावा किया था कि यात्रियों की सुविधा के लिए 12 हजार स्पेशल ट्रेनें चलेंगी, ताकि किसी को भी घर जाने में परेशानी न हो। लेकिन ज़मीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है।
बिहार जाने वाली ज्यादातर ट्रेनें ठसाठस भरी हुई हैं। टिकट मिलना मुश्किल है और कई जगह यात्रियों को खड़े होने तक की जगह नहीं मिल रही। ट्रेनों में यात्रियों की भीड़ को देखकर विपक्ष ने केंद्र सरकार की घेराबंदी की है।
कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने कहा कि त्यौहारों का महीना है दिवाली, भाईदूज, छठ। बिहार में इन त्यौहारों का मतलब सिर्फ आस्था नहीं, घर लौटने की लालसा है, मिट्टी की खुशबू, परिवार का स्नेह, गांव का अपनापन है। लेकिन यह लालसा अब यात्रा करने वालों के लिए संघर्ष बन चुकी है।
कई ट्रेनों में क्षमता से 200 प्रतिशत तक यात्री सवार हैं। लोग दरवाजों और छतों तक लटके हैं। फेल डबल इंजन सरकार के दावे खोखले हैं। 12,000 स्पेशल ट्रेनें कहां हैं? क्यों हालात हर साल और बदतर होते जाते हैं? क्यों बिहार के लोग हर साल इस तरह से अपमानजनक हालात में घर लौटने को मजबूर हैं?
अगर राज्य में रोज़गार और सम्मानजनक जीवन मिलता, तब उन्हें हज़ारों किलोमीटर दूर भटकना नहीं पड़ता। ये सिर्फ़ मजबूर यात्री नहीं, एनडीए की धोखेबाज़ नीतियों और नियत का जीता-जागता सबूत हैं। यात्रा सुरक्षित और सम्मानजनक हो यह अधिकार है, कोई एहसान नहीं।

