केके रिपोर्टर की कलम से: कर्ज की कढ़ाई में घी से नहाती मोहन सरकार!

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विश्लेषण: कृष्ण कांत सोनी 

मध्य प्रदेश में कर्ज का पहाड़ ढह रहा है, और मोहन सरकार घी से नहा रही है! कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी ने 28 फरवरी को सोशल मीडिया पर तीखा तंज कसा—मोहन सरकार 4,300 करोड़ रुपये का नया कर्ज ले रही है, वो भी रिजर्व बैंक में गवर्नमेंट सिक्योरिटीज बेचकर। हर महीने 5,000 करोड़ का कर्ज लेने की रफ्तार ने मप्र को कर्ज के दलदल में धकेल दिया है। अब कुल कर्ज 4.5 लाख करोड़ से ऊपर, यानी हर नागरिक के सिर पर 55,000 रुपये का बोझ! ये आंकड़े सिर्फ ठंडे नंबर नहीं, जनता की रीढ़ पर लदा जहर हैं।पटवारी का इल्ज़ाम गंभीर है—कर्ज का आधा हिस्सा, यानी 50%, कमीशन और घोटालों की भेंट चढ़ रहा है। परिवहन जैसे घोटाले तो बस भाजपा की भूखी मशीनरी का पेट भर रहे हैं। दूसरी तरफ, कर्ज के पैसे से हवाई जहाज, मंत्रियों की चमचमाती गाड़ियां, और बंगलों का रंग-रूप! ये लक्जरी का तमाशा तब हो रहा है, जब प्रदेश की सड़कें, स्कूल, और अस्पताल बदहाली में हैं। सवाल उठता है—क्या कर्ज का ये सैलाब विकास के लिए है या नेताओं की शानो-शौकत और लूट की हवस के लिए?आर्थिक नजरिए से देखें तो मप्र का कर्ज-जीडीपी अनुपात खतरनाक स्तर पर पहुंच रहा है। 4.5 लाख करोड़ का कर्ज प्रदेश की आर्थिक सेहत को दांव पर लगा रहा है। हर नागरिक पर 55,000 रुपये का बोझ मतलब आने वाली पीढ़ियां भी कर्ज की गुलामी झेलेंगी। कर्ज लेना गलत नहीं, बशर्ते वो उत्पादक निवेश में जाए। लेकिन हवाई जहाज और मंत्रियों की गाड़ियां क्या विकास का प्रतीक हैं? पटवारी का "पर्ची बहुत महंगी" वाला तंज सटीक बैठता है—ये सरकार जनता के भविष्य को गिरवी रख रही है।दूसरी तरफ, सरकार के पास जवाब क्या है? कर्ज की रफ्तार पर कोई सफाई नहीं, घोटालों पर चुप्पी, और लक्जरी पर गर्व! जनता के सवाल बुलंद हैं—कर्ज का पैसा कहां जा रहा है? अगर घोटाले नहीं, तो पारदर्शिता क्यों नहीं? परिवहन घोटाले की जांच क्यों ठंडे बस्ते में? और सबसे बड़ा सवाल—ये कर्ज का सिलसिला कब रुकेगा? जनता का गुस्सा सोशल मीडिया पर उबाल मार रहा है। कोई इसे "लूट का लाइसेंस" बता रहा है, तो कोई "कर्ज की कालिख"। मप्र की जनता अब जवाब मांग रही है। मोहन सरकार को ये समझना होगा—कर्ज का बोझ जनता के कंधों पर नहीं, जवाबदेही सरकार के सिर पर है। अगर ये कर्ज विकास के लिए नहीं, बल्कि लक्जरी और लूट के लिए है, तो ये "पर्ची" सचमुच बहुत महंगी पड़ने वाली है!प्रदेशवासियों, आपकी राय? कमेंट में बताएं—क्या ये कर्ज का खेल रुकेगा, या जनता की कमर टूटेगी?