सिलवानी नगर परिषद की स्वच्छता की गंगा को देखो, जो कागजों में तो झकझक चमकती है, मगर सड़कों पर कचरे के गंदे ढेर और सड़ांध की गटर में गोते खा रही है! हर महीने लाखों रुपये खर्च करने की ढोल पीटी जाती है, लेकिन सड़कों पर कचरे के पहाड़, मवेशियों का रैला, और मच्छरों का डंक चीख-चीखकर बता रहा है कि ये पैसा शायद फाइलों को सजाने और जिम्मेदारों की जेबें गर्म करने में उड़ रहा है। नगर परिषद के बड़बोले दावे सुनकर लगता है, सिलवानी बस एक कदम दूर है स्वच्छता का ताज छीनने से, मगर सड़क पर कदम रखो तो कचरे की बदबू नाक में तीर की तरह चुभती है, और सारे सपने धूल में मिल जाते हैं। बेचारे स्कूली बच्चे इन कचरे के ढेरों के पास से गुजरते हैं, जहरीली हवा में सांस लेते हैं, और उल्टी-दस्त से लेकर मलेरिया तक की बीमारियों के शिकंजे में फंस रहे हैं। दमा पीड़ितों की तो सांसें ही अटक रही हैं, क्योंकि सड़कों पर मिट्टी और कचरे का गुबार उनकी जिंदगी को और नरक बना रहा है। स्वच्छ भारत अभियान के नाम पर डस्टबिन तो रखवा दिए गए, गीला-सूखा कचरा अलग करने की नौटंकी भी चली, मगर डस्टबिन की देखरेख? अरे, वो तो जिम्मेदारों के लिए कोढ़ में खाज जैसा है! डस्टबिन अब कबाड़ का ढेर बन चुके हैं, सड़कों पर बेकार पड़े तमाशा देख रहे हैं, और कचरा? वो तो सड़कों पर बादशाह बनकर डटकर बैठा है। लोग भी पीछे नहीं, खाली प्लॉट्स को कचरे का अड्डा बना डाला, और नगर परिषद के कर्मचारी? वो तो शायद कचरे के ढेरों में ही अपनी कुर्सियां तलाश रहे हैं, क्योंकि साफ-सफाई का नाम लेना उनके लिए गुनाह है। मक्खियां, मच्छर, और बीमारियां मजे से पनप रही हैं, मवेशी कचरे में मुंह मारते हैं, आपस में भिड़ते हैं, और वाहनों से टकराकर हादसों का तमाशा खड़ा कर रहे हैं। नगर परिषद के दावों की धज्जियां हर गली-चौराहे पर उड़ रही हैं, और जनता? वो बीमारियों के डर से थर-थर कांप रही है, बदबू में सांस लेने को मजबूर, और बस यही सवाल पूछ रही है—स्वच्छ भारत का ढोंग कब खत्म होगा, और सिलवानी की सड़कों पर स्वच्छता का सूरज कब उगेगा, या ये सब बस फाइलों का जुमला बनकर रह जाएगा?
"सिलवानी में स्वच्छता का ढोल, कचरे के ढेर में गोल!"
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July 20, 2025
सिलवानी नगर परिषद की स्वच्छता की गंगा को देखो, जो कागजों में तो झकझक चमकती है, मगर सड़कों पर कचरे के गंदे ढेर और सड़ांध की गटर में गोते खा रही है! हर महीने लाखों रुपये खर्च करने की ढोल पीटी जाती है, लेकिन सड़कों पर कचरे के पहाड़, मवेशियों का रैला, और मच्छरों का डंक चीख-चीखकर बता रहा है कि ये पैसा शायद फाइलों को सजाने और जिम्मेदारों की जेबें गर्म करने में उड़ रहा है। नगर परिषद के बड़बोले दावे सुनकर लगता है, सिलवानी बस एक कदम दूर है स्वच्छता का ताज छीनने से, मगर सड़क पर कदम रखो तो कचरे की बदबू नाक में तीर की तरह चुभती है, और सारे सपने धूल में मिल जाते हैं। बेचारे स्कूली बच्चे इन कचरे के ढेरों के पास से गुजरते हैं, जहरीली हवा में सांस लेते हैं, और उल्टी-दस्त से लेकर मलेरिया तक की बीमारियों के शिकंजे में फंस रहे हैं। दमा पीड़ितों की तो सांसें ही अटक रही हैं, क्योंकि सड़कों पर मिट्टी और कचरे का गुबार उनकी जिंदगी को और नरक बना रहा है। स्वच्छ भारत अभियान के नाम पर डस्टबिन तो रखवा दिए गए, गीला-सूखा कचरा अलग करने की नौटंकी भी चली, मगर डस्टबिन की देखरेख? अरे, वो तो जिम्मेदारों के लिए कोढ़ में खाज जैसा है! डस्टबिन अब कबाड़ का ढेर बन चुके हैं, सड़कों पर बेकार पड़े तमाशा देख रहे हैं, और कचरा? वो तो सड़कों पर बादशाह बनकर डटकर बैठा है। लोग भी पीछे नहीं, खाली प्लॉट्स को कचरे का अड्डा बना डाला, और नगर परिषद के कर्मचारी? वो तो शायद कचरे के ढेरों में ही अपनी कुर्सियां तलाश रहे हैं, क्योंकि साफ-सफाई का नाम लेना उनके लिए गुनाह है। मक्खियां, मच्छर, और बीमारियां मजे से पनप रही हैं, मवेशी कचरे में मुंह मारते हैं, आपस में भिड़ते हैं, और वाहनों से टकराकर हादसों का तमाशा खड़ा कर रहे हैं। नगर परिषद के दावों की धज्जियां हर गली-चौराहे पर उड़ रही हैं, और जनता? वो बीमारियों के डर से थर-थर कांप रही है, बदबू में सांस लेने को मजबूर, और बस यही सवाल पूछ रही है—स्वच्छ भारत का ढोंग कब खत्म होगा, और सिलवानी की सड़कों पर स्वच्छता का सूरज कब उगेगा, या ये सब बस फाइलों का जुमला बनकर रह जाएगा?
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