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सफेद पाउडर मिलाकर घटिया गेहूं का आटा बनाया जा रहा था — 20 लाख का माल जब्त, फैक्ट्री सील, मालिक फरार

सफेद पाउडर मिलाकर घटिया गेहूं का आटा बनाया जा रहा था — 20 लाख का माल जब्त, फैक्ट्री सील, मालिक फरार

फिरोजाबाद
फ़ाइल कॉपी

Food Safety and Standards Authority of India (FSSAI) की निगाह के बावजूद फिरोज़ाबाद में एक फैक्ट्री पर बड़ी कार्रवाई हुई है।

उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद में रविवार (30 नवंबर 2025) को खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन की टीम ने सूचना मिलने के आधार पर छापा मारकर Brahmalal Traders नाम की आटा मिल को सील कर दिया। टीम को फैक्ट्री में भारी मात्रा में सफेद पाउडर, गेहूं और आटा मिला — जिसकी अनुमानित कीमत करीब ₹20 लाख बताई जा रही है। साथ ही 750 कुंतल गेहूं और 30 कुंतल आटे के साथ सात बोरी संदिग्ध सफेद पाउडर — संभवत: मिलावट के लिए उपयोग हो रहा पाउडर — जब्त किया गया।

क्या था मामला

खाद्य सुरक्षा टीम को सूचना थी कि इस मिल पर घटिया या बासी गेहूं तथा चावल की किन्की / धान-चोकर मिला कर आटा तैयार किया जा रहा है, और सफेद पाउडर मिलाकर उसे गेहूं जैसा दिखाया जा रहा है। छापे के समय शराबी सफेद पाउडर की बोरे मिलीं, जिससे मिलावट का संदेह पुख्ता हुआ। मिलावट का मकसद कम लागत वाले घटिया अनाज को “स्वच्छ” दिखाना और अधिक मुनाफा कमाना बताया जा रहा है।

फैक्ट्री मालिक – जिनके नाम रिपोर्ट में संजय गुप्ता बताया गया है — मौके से फरार हो गया। मामले में खाद्य विभाग ने प्राथमिकी दर्ज कर ली है, और सभी जब्त सामग्री के नमूने जांच के लिए लैब भेजे गए हैं।

स्वास्थ्य और सुरक्षा की चिंता

विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह के सफेद पाउडर (जिनमें अक्सर कैल्शियम-आधारित अशुद्धियाँ हो सकती हैं) को आटे में मिलाकर उपभोक्ताओं को बेचना 'सिर्फ धोखाधड़ी' नहीं बल्कि 'स्वास्थ्य के साथ ज़ुल्म' है। ऐसे आटे या उनसे बनी रोटियाँ और अन्य खाद्य पदार्थ नियमित रूप से खाने से पाचन, गुर्दे और लिवर से जुड़ी समस्या होने की संभावना होती है। रिपोर्ट में बताया गया है कि मिलावटी आटा खाने से किडनी में पथरी, गैस्ट्रिक परेशानी, पेट दर्द व अन्य गंभीर रोग हो सकते हैं।


यह अकेली घटना नहीं

  • ऐसा नहीं है कि यह पहला मामला है — पहले भी कई बार मिलावटखोरी के बड़े रैकेट पकड़े गए हैं। उदाहरण के लिए, कुछ महीने पहले राजस्थान में पनीर से लेकर दूध, घी, मसालों तक में बड़े पैमाने पर मिलावट की रिपोर्ट आई है।
  • इसी साल मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश समेत अन्य राज्यों में आटा, दाल, घी, दूध आदि में मिलावट पाए जाने की घटनाएँ सामने आई हैं।
  • यहां तक कि कुछ जांचों में पाया गया है कि देश में दैनिक रूप से बेचे जाने वाले खाद्य पदार्थों में से 20–26% तक सैंपल्स मानकों पर खरे नहीं उतरते।

सवाल — क्या इस देश में कुछ भी शुद्ध बचा है?

यह सवाल — जो आपने खुद उठाया है — शायद आज कई लोगों के मन में होगा।

  • हर दिन नए मिलावट के मामले सामने आ रहे हैं — आटा, दूध, पनीर, घी, मसाले और अन्य रोजमर्रा की चीज़ें।
  • कभी-कभी ऐसा लगता है कि निगरानी संस्थाएँ सिर्फ "सीलिंग की फोटो" पोस्ट करके अपना काम पूरा समझ ले रही हों। मगर असली सफलता तब होगी, जब सिर्फ रेड कॉमन कार्रवाई न हो, बल्कि जड़ से मिलावटखोरी रद्द हो सके — यानी दोषियों पर सख्त कार्रवाई, नियमित सैंपल-जाँच, और पारदर्शी रिपोर्टिंग।
  • इसके बिना उपभोक्ता का भरोसा टूट जाएगा — और सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे वे लोग, जो महंगाई और जरूरतों के बीच में रोज़मर्रा की चीज़ें खरीदते हैं।

आपको क्या करना चाहिए? — आम उपभोक्ता के लिए सुझाव

  • ऐसे उत्पाद लें, जिनकी पैकिंग अच्छी हो, लेबल में यूपी-आईडी, निर्माता, लॉट नंबर व मैन्युफैक्चर डेट आदि स्पष्ट हों।
  • आटे की “सफेद पाउडर” मिलावट के संकेतों के लिए घरेलू जाँच कर सकते हैं — उदाहरण के लिए पानी की टेस्ट: एक गिलास पानी में थोड़ा आटा छिड़कें; यदि तैरता हुआ चोकर दिखे, तो प्रमाण हो सकता है कि आटा शुद्ध नहीं। वांछित है कि लोग मिलावट की सूचना तुरंत स्थानीय खाद्य सुरक्षा अधिकारियों को दें।
  • दूसरों को जागरूक करें — मिलावटखोरी सिर्फ एक-एक फैक्ट्री का मामला नहीं है, यह सामूहिक समस्या है।

निष्कर्ष

यह खबर सिर्फ “एक घटना” नहीं है — बल्कि उस गंभीर और निरंतर चल रहे मिलावटखोरी के कारोबार का हिस्सा है, जिसने पूरे खाद्य आपूर्ति तंत्र को खतरे में डाल रखा है। अगर FSSAI जैसी संस्थाएँ सिर्फ रेड कर सील कर के फोटो पोस्ट करना ही अपना काम समझ लें — तो मिलावटखोरी कभी खत्म नहीं होगी।

यह समय है कि उपभोक्ता जागे, संस्थाएँ कठोर हो, और हम सब मिलकर तय करें — हमारे आटे में, हमारे खाने में, “सफाई” होनी चाहिए — सिर्फ रंग-रोगट नहीं।



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