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क्या डॉक्टर अब हीलर नहीं, सेल्समैन बन रहे हैं?
टारगेट-आधारित इलाज, अनावश्यक सर्जरी और कॉर्पोरेट हेल्थ मॉडल पर जनता का गुस्सा भड़का
जन चर्चा / बड़े प्राइवेट हॉस्पिटलों में इलाज की जगह “रेवेन्यू मॉडल” हावी होने के आरोपों ने फिर बहस छेड़ दी है। दावा है कि कई अस्पताल डॉक्टरों को टारगेट, ICU बेड-फिलिंग, OT उपयोग और एडमिशन कोटा पूरा करने का दबाव देते हैं—जिसके कारण अनावश्यक सर्जरी और जबरन भर्ती जैसी घटनाएँ बढ़ रही हैं।
ICU बेड भरने और OT खाली न रहने का दबाव
सूत्र बताते हैं कि कई अस्पताल अपनी मीटिंग में डॉक्टरों से सीधे पूछते हैं—
- आज कितने मरीज भर्ती किए?
- कितनों को ICU भेजा?
- कितने नए पेशेंट आए?
- रेफरिंग चैन ठीक चल रही है?
यानी प्राथमिकता मरीज नहीं, बल्कि नंबर बन गया है।
नॉर्मल डिलीवरी भी सी-सेक्शन में बदलने के आरोप
कथित टारगेट के कारण—
- जिन मरीजों को ऑपरेशन की जरूरत नहीं, उनका भी ऑपरेशन हो जाता है।
- कई महिलाओं को नॉर्मल डिलीवरी की जगह बिना कारण सी-सेक्शन कराया जाता है, क्योंकि इसमें अधिक रेवेन्यू है।
डॉक्टरों की शपथ क्या कहती है?
डॉक्टरों को दिलाई जाने वाली मेडिकल शपथ कहती है—
- “मरीज की भलाई मेरी पहली प्राथमिकता होगी।”
- “मैं अनावश्यक जांच, दवा या सर्जरी नहीं करूंगा।”
- “दबाव, लालच, लाभ या कट-प्रैक्टिस से मुक्त रहूँगा।”
लेकिन बढ़ते कॉर्पोरेट दबाव ने इस शपथ को हाशिये पर धकेल दिया है।
जनता का गुस्सा—X (Twitter) पर फूटा आक्रोश
इस मुद्दे पर सोशल मीडिया X पर हजारों लोगों ने अपनी राय रखी। कुछ प्रमुख प्रतिक्रियाएँ—
1. “कई डॉक्टर सही हैं, लेकिन गलत जानकारी फैलाने वाले भी कम नहीं।”
सागर पांडे लिखते हैं—
“शायद कुछ अस्पतालों में ऐसा हो रहा हो, लेकिन हर जगह नहीं। कई डॉक्टर गलत नहीं हैं, परंतु गलत प्रचार भी बहुत होता है।”
2. “आचार्य वाले लोग कौन-सी चैरिटी करते हैं? ₹50 की दवाई ₹1500 में बेचते हैं।”
सत्येंद्र पांडे लिखते हैं—
“असली लूट तो कई बड़े योग-हेल्थ संस्थान भी करते हैं। वहाँ जाकर देखो तब पता चलेगा।”
3. “हॉस्पिटल भी मेन्यू कार्ड की तरह हो गए हैं—हर चीज का रेट फिक्स।”
साधना ओझा का व्यंग्य—
“जैसे होटल में मेन्यू होता है, वैसे ही हॉस्पिटल में भी मेन्यू होना चाहिए। लूट देखकर यही लगता है।”
4. “डॉक्टरों की शिक्षा करोड़ों की हो गई—वह धर्मार्थ कैसे करेंगे?”
अनिल कुमार लिखते हैं—
“जब पढ़ाई इतनी महंगी होगी, तो डॉक्टर भी पैसे निकालने की कोशिश करेगा। असली गलती शिक्षा को महंगा करने की है।”
5. “यह गंभीर समस्या है—मरीज नहीं, रेवेन्यू महत्वपूर्ण हो गया है।”
गीता पटेल ने कहा—
“कुछ अस्पतालों ने इलाज को व्यवसाय बना दिया है। मेडिकल एथिक्स की शपथ भूली जा रही है। मेडिकल काउंसिल को सख्त कदम उठाने चाहिए।”
6. “निजी अस्पताल कॉर्पोरेट ऑफिस बन चुके हैं।”
एक अन्य यूज़र का कमेंट—
“इनका उद्देश्य मरीज की सेवा नहीं, सिर्फ मुनाफा है।”
7. “मेडिकल एथिक्स कहाँ गायब हैं?”
रेखा धमिक ने कहा—
“जब इलाज भी टारगेट से तय होने लगे, मरीज भरोसा करे तो किस पर करे?”
8. “मेरी माँ को वेंटिलेटर डाला सिर्फ टारगेट पूरा करने के लिए।”
टीना लिखती हैं—
“हॉस्पिटल ने झूठी आशा देकर माँ को वेंटिलेटर पर रखा, जब तक वह मर नहीं गईं।”
9. “इलाज KPI और टारगेट से चलेगा तो मरीज नहीं बचेंगे, सिर्फ बैलेंस शीट सुधरेगी।”
ब्रेजवीर पुंडिर का कमेंट—
“स्वास्थ्य सेवा मानवीय संवेदना का काम है, उद्योग नहीं।”
मरीजों का भरोसा कमजोर—सरकार व मेडिकल काउंसिल पर सवाल
लोग पूछ रहे हैं—
- प्राइवेट हॉस्पिटलों पर नियमित ऑडिट क्यों नहीं?
- टारगेट-आधारित इलाज पर कोई निगरानी क्यों नहीं?
- मेडिकल काउंसिल डॉक्टरों पर कार्रवाई क्यों नहीं करती?
जब इलाज भी KPI, रेवेन्यू और टारगेट से तय होने लगे, तब आम मरीज के पास विकल्प ही क्या बचता है?
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