- ग्रामीण शिक्षा का मजबूत चेहरा—जहां पढ़ाई के साथ संस्कार भी पहली पंक्ति में हैं।
- सियरमऊ स्थित सरस्वती शिशु मंदिर का वार्षिकोत्सव इसी सोच का सशक्त उदाहरण बना।
- कार्यक्रम में शिक्षा को केवल पाठ्यक्रम नहीं, बल्कि चरित्र निर्माण का माध्यम बताया गया।
सिलवानी: यह सिर्फ एक औपचारिक वार्षिकोत्सव नहीं था, बल्कि ग्रामीण शिक्षा की दिशा और सोच को सामने रखने वाला मंच था। सियरमऊ स्थित सरस्वती शिशु मंदिर का वार्षिकोत्सव समारोह हर्षोल्लास और गरिमामय वातावरण में संपन्न हुआ, जहां मंच से दिया गया हर संदेश शिक्षा के व्यापक उद्देश्य पर केंद्रित रहा।
कार्यक्रम का शुभारंभ माँ सरस्वती के पूजन और दीप प्रज्वलन के साथ हुआ। विद्यालय परिवार की ओर से अतिथियों का स्वागत पुष्पगुच्छ और स्मृति चिन्ह भेंट कर किया गया। समारोह में मुख्य वक्ता धर्मेंद्र गुर्जर, विशिष्ट अतिथि रामपाल सिंह राजपूत और अध्यक्षता जगदीश प्रसाद विश्वकर्मा ने की।
मुख्य वक्ता धर्मेंद्र गुर्जर ने अपने संबोधन में स्पष्ट शब्दों में कहा कि सरस्वती शिशु मंदिर केवल पढ़ाई कराने वाला संस्थान नहीं, बल्कि संस्कार, राष्ट्रभक्ति और चरित्र निर्माण की सशक्त प्रयोगशाला है। उन्होंने विद्यालय की शैक्षणिक उपलब्धियों, अनुशासन और संस्कारयुक्त शिक्षण प्रणाली की सराहना करते हुए कहा कि समाज के सहयोग से हो रहे आधारभूत विकास कार्य इस बात का प्रमाण हैं कि जब शिक्षा और समाज साथ चलते हैं, तो परिणाम दीर्घकालिक होते हैं। साथ ही उन्होंने विद्यालय के भविष्य के भौतिक और शैक्षिक विस्तार के लिए सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता पर बल दिया।
विशिष्ट अतिथि रामपाल सिंह राजपूत ने विद्यार्थियों की सांस्कृतिक प्रस्तुतियों की सराहना करते हुए उन्हें अनुशासन, परिश्रम और निरंतर प्रयास के मार्ग पर आगे बढ़ने का संदेश दिया।
अध्यक्षीय उद्बोधन में जगदीश प्रसाद विश्वकर्मा ने विद्यालय परिवार, आचार्यगण और अभिभावकों से विद्यालय के सर्वांगीण विकास में निरंतर सहयोग बनाए रखने का आह्वान किया।
कार्यक्रम के दौरान भैया-बहनों द्वारा प्रस्तुत देशभक्ति गीत, सांस्कृतिक नृत्य और प्रेरणादायी प्रस्तुतियों ने यह स्पष्ट कर दिया कि यहां शिक्षा केवल कक्षा तक सीमित नहीं, बल्कि व्यवहार में उतरती है। अंत में विद्यालय वंदना और शांति मंत्र के साथ समारोह का समापन हुआ।

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