खास बातें
- आदिवासी अंचल में कृषि विज्ञान केंद्र और कृषि विभाग की बड़ी पहल।
- वन पट्टा धारकों को बांटे गए मसूर के 500 बीज किट।
- वैज्ञानिकों ने बताया गेहूं, चना और मसूर में खाद और बीज उपचार का सही गणित।
सिलवानी तहसील के आदिवासी बाहुल्य ग्राम नारायणपुर में सोमवार को 'प्राकृतिक खेती और रबी फसलों की उन्नत तकनीक' पर एक दिवसीय कृषक संगोष्ठी (ओरिएंटेशन) का आयोजन किया गया। कृषि विज्ञान केंद्र (KVK), आत्मा योजना और किसान कल्याण तथा कृषि विकास विभाग के संयुक्त तत्वावधान में हुए इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में किसान शामिल हुए।
विशेषज्ञों ने सिखाए खेती के गुर
कार्यक्रम में कृषि विज्ञान केंद्र, रायसेन के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ. स्वप्निल दुबे ने किसानों को रबी की प्रमुख फसलों—गेहूं (शरबती, कठिया) की उन्नत किस्मों की जानकारी दी। उन्होंने सिंचित अवस्था में खाद के सही उपयोग का फार्मूला भी साझा किया:
- गेहूं के लिए: 120 किलो नाइट्रोजन, 60 किलो स्फुर और 40 किलो पोटाश।
- चना व मसूर के लिए: 20 किलो नाइट्रोजन, 60 किलो स्फुर और 20 किलो पोटाश।
उन्होंने डीएपी (DAP) के विकल्प के रूप में एनपीके (NPK) और जैव उर्वरकों के इस्तेमाल पर जोर दिया। साथ ही धान के बाद जीरो टिलेज मशीन से गेहूं और चने की सीधी बुवाई की तकनीक भी समझाई।
बीज उपचार है जरूरी: डॉ. द्विवेदी
वैज्ञानिक डॉ. प्रदीप कुमार द्विवेदी ने फसल को रोगों से बचाने के लिए बुवाई से पहले बीज उपचार को अनिवार्य बताया। उन्होंने सलाह दी:
- रासायानिक उपचार: कार्बेन्डाजिम + मैन्कोजेब (2 ग्राम/किग्रा) या कार्बोक्सिन + थायराम (3 ग्राम/किग्रा)।
- जैविक उपचार: ट्राइकोडर्मा विरिडी (10 ग्राम प्रति किलो बीज)।
किसानों को मिली सौगात
वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी सुनील मालवीय ने कृषि विभाग की विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं की जानकारी दी, वहीं फार्म अधीक्षक रघुवीर सिंह कुशवाह ने प्राकृतिक और जैविक खेती के फायदों पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम के अंत में कृषि विभाग द्वारा वन पट्टा धारकों को मसूर की उन्नत किस्म के 500 बीज किट और केवीके (KVK) द्वारा भी किट वितरित किए गए।
इनकी रही गरिमामयी उपस्थिति
कार्यक्रम में कृषि सभापति विनोद शाह, जनपद सदस्य बंसीलाल, भाजपा मंडल अध्यक्ष पप्पू ठाकुर, रमेश कुमार, प्रतापगढ़ सरपंच प्रतिनिधि राजेश राय सहित क्षेत्र के कई गणमान्य नागरिक और प्रगतिशील किसान मौजूद रहे।

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