शिक्षकों पर आरोप या शिक्षा मंत्री की विफलता,नैतिकता की दुहाई या जिम्मेदारी से बचाव?

Krishna Kant Soni


मध्य प्रदेश सरकार के स्कूल शिक्षा मंत्री राव उदय प्रताप सिंह एक बार फिर अपने विवादित बयानों के चलते सुर्खियों में हैं। रायसेन जिले में आयोजित एक सरकारी कार्यक्रम के दौरान, उन्होंने खुले मंच से अपने ही विभाग के शिक्षकों पर गंभीर आरोप लगाए। मंत्री ने कहा कि प्रदेश के करीब 10-12 हजार शिक्षक सिर्फ स्कूल आकर उपस्थिति लगाते हैं और फिर चले जाते हैं। यही नहीं, उन्होंने यह भी दावा किया कि इनमें से 500 शिक्षकों को वे व्यक्तिगत रूप से जानते हैं, जो स्कूल में पढ़ाने के लिए अपनी जगह निजी शिक्षकों को रखते हैं। उनका कहना था कि उनके अपने जिले में ही ऐसे 100 शिक्षक हैं। मंत्री के इस बयान ने न केवल शिक्षा विभाग के भीतर हलचल मचाई है, बल्कि राजनीतिक गलियारों में भी कई सवाल खड़े कर दिए हैं। आखिर, जब मंत्री को अपने विभाग में हो रही गड़बड़ियों का पता है, तो मंच से सार्वजनिक रूप से आरोप लगाने की बजाय वे इसे सुधारने के प्रयास क्यों नहीं कर रहे? कार्यक्रम के बाद, पत्रकारों ने जब उनसे सवाल किया, तो उन्होंने इसे "नैतिकता का प्रश्न" बताया। उन्होंने कहा कि शिक्षकों को अपने कर्तव्य का पालन नैतिकता के आधार पर करना चाहिए। लेकिन सवाल यह है कि जिन शिक्षकों पर वे खुद बेईमानी का आरोप लगा रहे हैं, उनमें अचानक नैतिकता कैसे जागृत होगी? मंत्री जी के आलोचक कह रहे हैं कि अगर वे अपने विभाग को सही तरीके से नहीं संभाल पा रहे हैं, तो बेहतर होगा कि वे अपनी नैतिकता के आधार पर खुद इस्तीफा दें। क्या कहना है आपका इस पूरे मुद्दे पर? क्या मंत्री का बयान सही है या यह केवल राजनीति का एक और पहलू है? अपनी राय हमें जरूर बताएं।


 

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