मुफ्त की रेवड़ी से बिगड़ी राज्य की आर्थिक सेहत, कर्ज भी बढ़ा

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Mpnews। मध्यप्रदेश में मुफ्त की नीति से सरकारी खजाने को खस्ता हालत में ला दिया है। 2.79 लाख करोड़ के बजट वाले प्रदेश में औसत एक लाख करोड़ रुपए आम आदमी को मुफ्त या सस्ती सुविधा देने पर खर्च कर दी जाती है। सबसे ज्यादा राशि मुफ्त राशन, शिक्षा, इलाज और सस्ती बिजली की है। सरकार अनुदान देकर जन्म से लेकर मृत्यु तक गरीब आदमी की मदद करती है। इसके दोनों पहलू हैं। एक ओर गरीब की मदद होती है, तो दूसरी ओर सरकारी खजाने की हालत पतली हो जाती है। पीएम नरेन्द्र मोदी भी रेवड़ी कल्चर को लेकर चिंता जता चुके हैं।

मुफ्त की रेवड़ी से बिगड़ी राज्य की आर्थिक सेहत, कर्ज भी बढ़ा

कर्ज के ऐसे हाल: मौजूदा बजट 2.79 लाख करोड़ का है। हालत ये है कि अब कर्ज औसत 2.87 लाख करोड़ हो गया है। कर्ज की लिमिट के किनारे ही प्रदेश है। प्रदेश को बार-बार कर्ज की अतिरिक्त सीमा मिलती रही है। इससे कर्ज की प्रवृत्ति भी बढ़ी। कोरोना काल से अब तक प्रदेश को अतिरिक्त लिमिट मिली है।


राशन- सूबे की लगभग 7.50 करोड़ आबादी में औसतन 5.55 करोड़ को सस्ता अनाज। ज्यादातर अनाज मुफ्त। मुफ्त जैसे ही दाम पर केरोसिन, नमक, शक्कर और दाल तक सरकार देती है।


प्रमुख योजनाएं


मुख्यमंत्री फसल ऋण माफी- 7,92,49,00 हजार। अन्नपूर्णां योजना 4,00,00,00 हजार। डबल फोर्टिफाइट और आयोडीन युक्त नमक का वितरण- 60,00,00 हजार। विक्रमादित्य नि:शुल्क शिक्षा योजना- 3,15 हजार रुपए। मुख्यमंत्री जनकल्याण योजना संबल 6,00,00,00 हजार रुपए। नि:शुल्क पाठ्य सामग्री- 1,09,03,50 हजार रुपए।


बिजली- सरकार का दावा है कि 1.30 करोड़ बिजली उपभोक्ता में से 90 लाख को सस्ती बिजली सब्सिडी के जरिए देती है। औसत 21,500 करोड़ रुपए सालाना सब्सिडी पर खर्च। इस साल 6000 करोड़ की बिजली बिल माफी और कर दी। यानी बिजली भी लगभग मुफ्त मिली।


शिक्षा- सरकार का दावा है कि प्रतिभावान को पूरी शिक्षा मुफ्त मिलेगी। चाहे वह आईआईटी में पढ़े या विदेश में। पहली से आठवीं तक मुफ्त पढ़ाई शिक्षा के अधिकार के तहत है। वहीं बाकी शिक्षा राज्य फ्री देता है।


इलाज- सूबे में सरकार इलाज भी मुफ्त देती है। यूं तो आयुष्मान कार्ड पर 5 लाख तक का इलाज मुफ्त है, लेकिन अधिकतर मुद्दा आधारित मामलों में सरकार असीमित इलाज मुफ्त देती है। कोरोना काल में पूरा कोरोना और ब्लैक फंगस का इलाज मुफ्त दिया गया।


विशेषज्ञ बोले


मुफ्त सौगातें देना निश्चित रूप से खजाने पर आर्थिक बोझ डालती हैं, इसलिए इस मामले में कठोर कानून बनना चाहिए। सरकार लोगों को आत्मनिर्भरबनाए तो बेहतर है।- जयंतीलाल भंडारी, अर्थशास्त्री


मुफ्त में सामग्री देने से समाज बेहतर कैसे हो सकता है। बेहतर होगा कि मनरेगा के तहत सालभर लोगों को रोजगार दिया जाए, जिससे वे आत्मनिर्भर बन सकें। सब्सिडी को मुफ्त सामग्री से जोड़ना उचित नहीं होगा। समाज में आर्थिक रूप से कमजोर या पिछड़े लोगों को मुख्यधारा में शामिल करने लिए उन्हें आर्थिक मदद मिलना चाहिए~एसी बेहार, रिटायर मुख्य सचिव

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